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साइकॉन की संरचना (Structure of Sycon) Related by Science

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Sycon साइकॉन साइकॉन को साइफा (Scypha) भी कहते हैं साइकॉन समुंद्र में पाया जाता है जो एक स्पंज है जो समुंद्र मेंं दूर-दूर तक फैला रहता है यह समुन्द्र के किनारे  उभरी हुई चट्टानों से या अन्य किसी पदार्थ सेेे चिपके हुए पाए जाते हैं यह संघ वासी जीव होता है जिसकी कई शाखाएं होती हैं    बाह्य संरचना (External morphology) साइकॉन संघों को बाह्य रूप से देखने पर वे एक वृक्ष के समान दिखाई देते हैं जिसमें दो या दो से अधिक ऊपर की ओर  बेलनाकार शाखाएं होती हैं जिनका निचला भाग या आधार (Stolon) से जुड़ा रहता है साइकॉन की प्रत्येक शाखा लंम्बी  बेलनाकार  होती है जिसका मध्य का भाग थोड़ा उभरा हुआ होता है जिसकी प्रत्येक बेलनाकार शाखा का आकार 2 से 8 मिली मीटर तक होता है इस संघ की अधिकतम लंबाई 2.5 से 10 mm तक होती है प्रत्येक बेलनाकार शाखा के ऊपर का भाग सर्करा होता है जिसमें एक चौड़ा छिन्द्र पाया जाता है जिसे ऑस्कुलम (Osculum) कहते हैं ऑस्कुलम के चारों ओर असंख्य संख्या में कैल्केरियस कणिकाओं (Calcareous spicules) की एक झालर होती है जिसे ऑस्कुलर  फ्रिज (Oscular fringe) या ऑस्कुलर झालर कहते हैं यह झालर साइकॉन के

यूग्लीना की बाह्य संरचना (External morphology of Euglena)

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                यूग्लीना (Euglena) संघ (Phylum) प्रोटोजोआ (Protozoa) उपसंघ (Subphylum) सार्कोमैस्टिगोफोरा (Sarcomastigophora) उपवर्ग (Subclass) मैस्टिगोफोरा (Mastigophora) वर्ग (Class) फाइटोमैस्टिगोफोरा (Phytomastigophora) गण Order    यूग्लीनाइडा (Euglenida) (1) वास एवं वासस्थान (Habit and Habitat) -  यूग्लीना में एक पर्णहरिम (Chlrophil)  नामक हरा पदार्थ पाया जाता है जिसके कारण यह अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं इसलिए इन्हें जंतु तथा पादप के बीच की संयोजी कड़ी (Connecting links) कहते हैं इसे  प्रोटोजोआ प्राणी भी कहते है यह तालाब पोखरों तथा नदी नाले आदि  के रुके हुए जल में पाया जाता है जिसमें सड़ते हुए कार्बनिक पदार्थ की अत्याधिक मात्रा  होने के कारण  बरसात के दिनों में जब इनकी संख्या बहुत अधिक हो होती है जिसके कारण जल की ऊपरी सतह हरी हरी दिखाई देने लगती है (2) आकार एवं परिमाण (Shape and Size)   यूग्लीना तुर्करूपी लंबे आकार का सूक्ष्मजीव है जिसकी लम्बाई 0.13 mm  तक होती है। इसका अगला सिरा गोल होता है जबकि पिछला सिरा नुकीला कुन्द-सा होता है। (3) आशय (Reservoir) -  यूग्लीना के शर

पेलीमोन के उपांग appendages of palaemon

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                  पेलीमोन (Palaemon) पेलीमोन के शरीर के प्रत्येक खंड मैं 1 जोड़ी उपांग पाए जाते हैं जो द्विशाखान्वित  होते हैं क्रिस्टियन जंतुओं  में  द्विशाखान्वित प्रकार के उपांग दो शाखाओं द्वारा निर्मित होते हैं दोनों शाखाएं आधार भाग से जुड़ी होती हैं आधार भाग प्रोटोपोडाइट  कहलाता है मध्य का भाग  द्विशाखान्वित होता है जिसे एण्डोपोडाइट कहते हैं  जबकि बाहरी भाग को एक्सपोडाइट कहते हैं प्रत्येक प्रोटोपोडाइट  मैं 2 जोड़ी पोडोमियर्स होते हैं पोडोमियर्स के निचले भाग को काक्सोपोडाइट कहते हैं  जबकि ऊपरी भाग को बेसीपोडाइट कहते हैं प्रोटोपोडाइट के ऊपर एक झिल्ली का आवरण होता है जिसे एपीपोडाइट कहते हैं एपीपोडाइट श्वसन में सहायक होता है पेलीमोन की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार उपांग भिन्न भिन्न आकार के होते हैं इसमें कुल 19 जोड़ी उपांग पाए जाते हैं जो निम्न भागों में विभाजित होते हैं सिर उपांग (Cephalic appendage) प्रोन में 5 जोड़ी सिर्फ उपांग पाए जाते हैं जो निम्न प्रकार के होते हैं (1)एंण्टिन्यूल्स (Antennules) एंण्टिन्यूल्स पेलीमोन के अगले भाग में पाया जाने वाला उपांग है जो प्रथम नेत्र बिंदु के

बेलेनोग्लोसस की संरचना (Structure of balanoglossus Related by Science)

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          बैलेनोग्लोसस   वर्गीकरण(Classification)          Phylum    -  कोर्डेटा (Chordata) SubPhylum   -  हेमी कोर्डेटा(Hemichordata) Class    -  एण्टेरोपन्यूस्टा (Enteropneusta) Family    -  (ptychoderidae) Species    -  क्लैवीजेरस (Clavigerus) Genus   -  बैलेनोग्लोसस (Balanoglossus) स्वभाव एवं आवास (Habit and Habitat) बेलेनोग्लोसिस संसार के सभी समुद्र  में पाये जाने वाला एक समुद्री जीव है जो समुद्र के किनारे पर रेत में U आकार की बिल बना कर के रहता है इसकी संसार में लगभग 20 जातियां पाई जाती हैं इसकी प्रत्येक भुजा के आंतरिक सतह मैं श्लेष्मा ग्रंथियां पाई जाती हैं जो श्लेष्मा (mucus) का निर्माण  करती हैं जिससे बिल के बालुई कण चिपक जाते हैं अर्थात सुरंग बनाने में सहायता करते हैं इसके शरीर के चारों ओर श्लेष्मा का आवरण होता है बेलेनोग्लोसस का शरीर तीन भागों में बटा होता है (I)शुड (proboscis) (II) कॉलर (callar) तथा (III)धड़ (trunk)  शूड  बेलेनोग्लोसस् को मिट्टी में धंसने या सुरंग बनाने में सहायता करता है शुड और कलर के मध्य मसल्स (muscles)पाई जाती हैं जो शुड तथा कॉलर को सिकुड़ने और फेलने मे

मानव मस्तिष्क की संरचना (Structure of human brain) Related By Science

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मस्तिष्क (Brain) हमारा मस्तिष्क तंत्रिका कोशिकाओं (nerve cell) का बना होता है जिसे न्यूरॉन कोशिका (neurone cell) भी कहते हैं neurone cell शरीर की सबसे लंबी व बड़ी कोशिका होती है इस कोशिका में किसी भी प्रकार का कोई भी कोशिका विभाजन (cell division)नहीं होता इसलिए अगर मस्तिष्क में कोई क्षति पहुंचती है तो वह ठीक नहीं होती क्योंकि यह न्यूरॉन सेल का बना होता है जिसमें सैंटरोसोम (Centrosome) नहीं पाया जाता सैंटरोसोम ही  स्वत: ठीक करने की क्षमता रखता है यदि सैंटरोसोम कोशिका का विभाजन ज्यादा कर दे तो कैंसर हो जाता है लेकिन मस्तिष्क में सैंटरोसोम नहीं पाया जाता है फिर भी कैंसर (cancer)हो जाता है इसका कारण यह है कि हमारा मस्तिष्क 90% न्यूरॉन कोशिका का बना होता है जिसमें सैंटरोसोम नहीं पाया जाता है इसलिए इसमें कोई कोशिका विभाजन नहीं होता है लेकिन मस्तिष्क का 10% भाग न्यूरोग्लियल कोशिकाएं (neuroglial cell) का बना होता है जिसमें सेंट्रोसोम पाया जाता है और सेंट्रोसोम की वजह से इसमें कोशिका विभाजन पाया जाता जब कोशिका विभाजन कंट्रोल (control)के बाहर होता है तो मस्तिष्क में कैंसर हो जाता है मस्तिष्क  कै

कोशिका की संरचना (Structure of cell Related by Science)

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कोशिका (Cell) कोशिका जीवो के शरीर की सबसे छोटी इकाई होती है कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने निर्जीव कोशिका की खोज की थी इसलिए इनको कोशिका का जनक कहते हैं जीवित कोशिका की खोज सूक्ष्मदर्शी की सहायता से एंटोनी वन लुईवेनहक  ने 1674 में किया स्लाइडर और श्वान  नाम के दो वैज्ञानिक ने बताया की जीवो का पूरा शरीर कोशिकाओं से मिलकर बना होता है इसी के आधार पर उन्होंने कोशिका का  सिद्धांत दिया दुनिया की सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाजमा की होती है और दुनिया की सबसे बड़ी कोशिका  शुतुरमुर्ग की होती है मानव में सबसे छोटी कोशिका मनुष्य के शुक्राणु (sperm)की होती है‌ और सबसे बड़ी कोशिका महिला के अंडाणु (ovum) की होती है मानव की सबसे लंबी कोशिका न्यूरॉन (neurone) होती है जो ब्रेन (brain) में पाई जाती है इसका कोशिका विभाजन नहीं होता है सबसे तेजी से कोशिका का विभाजन यकृत या लीवर में होता है कई कोशिका मिलकर के उत्तक का निर्माण करती है और कई उत्तक मिलकर अंग का निर्माण करते हैं और कई अंग मिलकर एक शरीर का निर्माण करते हैं कोशिका दो प्रकार की होती है प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell) प्रोकैरियोटिक कोश

लाइसोसोम की संरचना (Structure of Lysosome Related by Science)

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लाइसोसोम (Lysosome) * लाइसोसोम की खोज डी  डुबे  (De-Duve) ने 1955 मे अपने कार्यों के आधार पर किया था * पेलाडे इसके कायिक लक्षणों के बारे में बताया और यह कार्य डी दुबे  के साथ किया जिसके लिए इन दोनों को नोबेल  पुरस्कार से सम्मानित किया गया  * लाइसोसोम यकृत कोशिकाओं  अग्नाशय  कोशिका वृक्क कोशिका आदि में पाए जाते हैं * लाइसोसोम में 30 से 35 जल अपघटन एंजाइम होते हैं * लाइसोसोम अम्लीय  होते हैं जिसका PH मान 5 या 5 से कम होता है * लाइसोसोम गोलाकार झिल्ली के जैसी संरचना में पाए जाते हैं जिसे रिक्तिका कहते हैं * लाइसोसोम की संरचना (Structure of Lysosome) * लाइसोसोम का निर्माण थैलिया (Vasicle) अथवा नलिकाओं (Tubules) के द्वारा होता है * लाइसोसोम मुख्य रूप से जंतु कोशिकाओं में पाए जाते हैं * लाइसोसोम एक स्तरीय झिल्ली का बना होता है जिसमें सैलिक अम्ल (Sialic acid) पाया जाता है * लाइसोसोम डीएनए ,आर एन ए ,प्रोटीन आदि का पाचन करता है इसीलिए इसको आत्महत्या का थैला भी कहते हैं लाइसोसोम निम्न प्रकार का होता है प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosome) * इसे प्रोटोलाइसोसोम (Protolilysosome) भी कहत

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना(Structure Of Mitochondria Related by Science)

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माइट्रोकांड्रिया mitochondria * कोलिकर (Kollicker) ने कीटों की रेखित पेशीयों में सन 1880 में माइट्रोकांड्रिया की खोज की अल्टमान (Altman)  ने कोशिका में माइट्रोकांड्रिया का अध्ययन किया और इसका नाम सन 1890 में बायोप्लास्ट रखा इसके बाद सन 1897 में सी बेन्डा (C.Banda)  ने इसका नाम माइट्रोकांड्रिया रखा  * मेकलिस्ट ने माइट्रोकांड्रिया को कोशिका में उपस्थित ऑक्सीकरण अपचयन क्षेत्र बताया * माइट्रोकांड्रिया के अंदर मैट्रिक्स की दीवार में जो उंगली के समान संरचनाएं दिखाई देती हैं उन्हें Cristae कहते हैं * माइट्रोकांड्रिया को सूत्रकणिका भी कहते हैं * माइट्रोकांड्रिया में क्रेब्स क्रेब्स चक्र चलता है तथा कोशिकीय श्वसन माइट्रोकांड्रिया में ही होता है * क्रेब्स चक्र ऑक्सीजन की उपस्थिति में चलता है जो ऑक्सीजन से एटीपी का निर्माण करता है और 38 एटीपी (ATP) मिलकर एक ग्लूकोज का निर्माण करती हैं जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है * जीवाणु कोशिका में माइट्रोकांड्रिया नहीं पाई जाती है माइट्रोकांड्रिया की संरचना (Structure of mitochondria) * माइट्रोकांड्रिया संख्या के आधार पर जंतु कोशिकाओं में अधिक सं

गाल्जी बॉडी की संरचना ( Structure of Golgi body Related by Science)

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Golgi complex or Golgi body (गाल्जी कंपलेक्स या गाल्जी बॉडी) * गाल्जी बाॅडी  की खोज कैमिलो गाल्जी जी ने 1873 में नर्व सेल का अध्ययन करते हुए गाल्जी बाॅडी की खोज की * गोल्जी बॉडी को Lipochondria, golgisome, dictyosome आदि नामों से जाना जाता है * Golgi body ट्रैफिक पुलिस( traffic police )या ट्रेफिक कंट्रोलर( traffic controller) आदि नाम से भी जाना जाता है  * सबसे जटिल रूप में सबसे अधिक संख्या में गाल्जी कंपलेक्स (Golgi complex)पाए जाते हैं * जीवो में सबसे अधिक सबसे जटिल रूप में गाल्जी कंपलेक्स लीवर सेल( Liver cell) और हैपेटिक सेल में उपस्थित होते हैं * प्लांट में गाल्जी बॉडी को डिक्टीयोसोम के रूप में जाना जाता है क्योंकि प्लांट सेल में यह साइटोप्लाज्म (Cytoplasm) में बिखरी हुई संख्या में पाए जाते हैं लेकिन एनिमल(Animals) में यह संगठित और जटिल रूप में प्रदर्शित होते हैं * गाल्र्जी कंपलेक्स की सबसे साधारण इकाई सिस्टरनी (Cisternae) के रूप में होती है * सिस्टरनी (Cisternae)के समूह को डिक्टीयोसोम भी कहते हैं * Golgi body मैं उपस्थित सभी संरचनाऐ  (Cisternae, tubules vasicle) के बारे में डी0 ज

एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम की संरचना (Structure of Endoplasmic reticulum) related by Science

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Endoplasmic reticulum एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम की खोज सन 1945 में पोटर नामक वैज्ञानिक ने खोजा था एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम यूकैरियोटिक कोशिका में पाई जाती है जो दोहरी परत की बनी होती है आकृति के आधार पर एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम तीन  प्रकार की संरचनाओं की बनी होती है   (1) Cisterny -  यह लंबी और चपटी थैलियां होती हैं जो एक दूसरे के समांतर होती हैं (2)Visicles -  अंडाकार संरचनाएं होती हैं (3)Tubules -  यह केंद्रक के पास सूक्ष्म नलिकाओं के रूप में निकलती हैं एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम दो प्रकार की होती है (1)रफ एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम (Rough Endoplasmic reticulum) रफ एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम के ऊपरी सतह पर राइबोसोम उपस्थित होने के कारण इन की ऊपरी सतह खुरदरी हो जाती है इसलिए इनको रफ एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम कहते हैं और इसे ग्रेन्यूलर एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम भी कहा जाता है इनमें राइबोसोम एक विशेष प्रकार की ग्लाइकोप्रोटीन के द्वारा जुड़ जाते हैं जिससे Riboforin I व  Riboforin II के नाम से जाना जाता है  राइबोसोम की उपस्थिति के कारण मुख्य रूप से प्रोटीन व एंजाइम का संश्लेषण

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